सम्माननीय पाठक !

नमस्ते !

{ नः मः अस्ते अर्थात [आपके बिना और आपके सामने भी ] मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। }

बात सारगर्भित भी है तो कुछ लम्बी-चौड़ी भी है अतःबात को संपादित करके कहने हेतू अभी 10 ब्लोग बनाए हैं.

"GISM" नामक इस ब्लॉग को केन्द्र में रखें और यहीं से पढ़ना शुरू करें।

देवर्षि नारद के तीन ब्लॉग में से

"सामाजिक पत्रकारिता" में जातीय व् साम्प्रदायिक संरचना को विस्तार से बताने पर लेखन केन्द्रित रहेगा।

"नैतिकता की राजनीति" में लेखन पौराणिक,प्राचीन तथ्यों एवं प्रकृति निर्मित संविधान,क़ुदरत के क़ानून,Nature Created Constitution,Laws of natural order of things पर केन्द्रित रहेगा।

"निर्दलीय राजनैतिक मंच" में लेखन वर्तमान की समसामयिक बातों पर केन्द्रित रहेगा।

इन तीनों ब्लॉग्स को आप "कला संकाय" [Faculty of arts] के विषयान्तर्गत पढ़ें।

"मुनि वेदव्यास" के चारों ब्लॉग को धर्म एवं विज्ञान के विषयान्तर्गत पढ़ें। धर्म को अपने आप के प्रति कर्तव्य एवं अधिकार के रूप में लें और विज्ञान को आयुर्विज्ञान के अंतर्गत लें।

इन चारों ब्लॉग्स को "दर्शन एवं विज्ञान संकाय" [Faculty of Philosophy and Sciences] विषयान्तर्गत पढ़ें।

"प्रणय विज्ञान" नामक "कार्तिकेय" के ब्लॉग को "वैवाहिक जीवन और नैसर्गिक आनंद" विषयान्तर्गत पढ़ें।

अंतिम चरण का ब्लॉग है "भव्य महा भारत निर्माण" ! इस ब्लॉग को "अर्थशास्त्र संकाय" [Faculty of Economics] विषयान्तर्गत पढ़ें। लेकिन चूँकि यह ब्लॉग "सांख्य और सांख्यिकी" [Principle Knowledge and Statistics] तक सीमित नहीं है बल्कि साँख्य का योग-प्रयोग-उपयोग [Experiment &-Applying to use] करना है अर्थात "व्यावहारिक धरातल [Practical Ground] पर नव महा भारत का निर्माण" करने हेतु पढ़ें।

इस तरह प्रथम चरण में हमें ज्ञान मार्ग से ध्यान मार्ग [Meditative Concentration via Knowledge path] से चलना है अतः सात्विक-बुद्धि,बोद्धिसत्व का उपयोग करके बुद्धि के देवता को काबू में करना है तब फिर फ़तह ही फ़तह है। फ़ारसी में कहा है 'हिम्मते मर्दां मददे ख़ुदा'। अतः प्रथम चरण में अपनी अवधारणाओं को स्पष्ट करके,अपने आप में आत्मविश्वास बढ़ाने के कार्य से प्रारम्भ करें और पृथ्वी पर पुनः स्वर्ग बसाने के कार्य का श्री गणेश करें। अगले चरण स्वतः बढ़ते चले जायेंगे। बस नीयत होनी चाहिए नियति स्वतः लक्ष्य तक अवश करके धकेलती हुई पहुँचा देगी।

कृपया सभी ब्लॉग पढ़ें और प्रारंभ से,शुरुआत के संदेशों से क्रमशः पढ़ना शुरू करें तभी आप सम्पादित किये गए सभी विषयों की कड़ियाँ जोड़ पायेंगे। सभी विषय एक साथ होने के कारण एक तरफ कुछ न कुछ रूचिकर मिल ही जायेगा तो दूसरी तरफ आपकी स्मृति और बौद्धिक क्षमता का आँकलन भी हो जायेगा कि आप सच में उस वर्ग में आने और रहने योग्य है जो उत्पादक वर्ग पर बोझ होते हैं।

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

प्राक्कथन 4; संस्थागत विषमताएँ !


 हे भारत राष्ट्र !

[ जिसकी अर्थव्यवस्था का आधार प्राकृतिक उत्पादन है और भारत नामक अग्नि से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया के परिणाम से भरपूर वनस्पति पैदा होती है]  

हे भारतीय विद्यार्थियों एवं मतदाताओं !

सुख चाहे कितना ही व्यक्तिगत हो, सामाजिक प्राणी के लिए संस्थागत विषमताएँ दूर करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्था राष्ट्र कहलाती है । मैं इस ब्लोग्स के माध्यम से एक राष्ट्रीय क्रान्तिकारी आन्दोलन शुरू करवाना चाहता हूँ । जब भी क्रान्ति शब्द का उपयोग होता है तो कुछ चित्र आपके मानस में बनते हैं । जैसे कि हो-हुल्लड़ होता है । भीड़ इकट्ठी हो जाती है । लोग सड़कों पर उतर कर सड़क छाप बनते है ।

सबसे बड़ी बात है कि आन्दोलन करने के लिए एक नेतृत्व होता है उनके पीछे-पीछे राग में राग मिलाते हुए चलने वालों की भीड़ होती है । परिणाम यह होता है कि नेतृत्व करने वाला यदि स्वयं धूर्त है तब तो वह सत्ता का सुःख भोगता है और नेतृत्व ईमानदार होता है तो अंततः सत्ता धूर्त लोग हथिया लेते हैं ।


इस तरह 1857 की क्रान्ति से लेकर शुरू हुई सभी क्रान्तियों का परिणाम मात्र सत्ता-हस्तान्तरण होकर रह गया है. जबकि इन सभी क्रान्तियों में स्वतन्त्रता का बैनर लगाया गया था। किन्तु मैं जो आन्दोलन चाह रहा हूँ यह इन सभी बिन्दुओं से भिन्न है ।


पहली बात तो यह कि मैं आन्दोलन का नेतृत्व करने के लिए ना तो स्वयं सड़क पर उतरने जा रहा हूँ और ना ही आप को प्रेरित कर रहा हूँ, बल्कि यह आन्दोलन मैं नहीं कर रहा हम सब मिलकर कर रहे हैं। मैं तो संयोजक,समन्वयक हूँ। स्पष्ट भाषा में यह कि मैं यह नहीं चाहता की तमोगुणी अन्धानुयाईयों की भीड़ मुझे समर्थन दे, बल्कि मैं यह चाहता हूँ, आप मेरे मन्तव्य को समझ कर उस पर चिन्तन मनन करें और फिर स्व-विवेक से निर्णय करें। 

"सम्यक ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है" के सिद्धांत पर चलकर काल-स्थान-परिवेश से बनी परिस्थिति का यथार्थ दृष्टिकोण से आंकलन करें और स्वयं ही अपने आप का नेतृत्व करें । जब आप अपने आप का नेतृत्व करने लग जायेंगे तब आप अपने क्षेत्र के उस वर्ग के हित में सोच सकेंगे जो वर्ग हमारी अर्थव्यवस्था का, हमारे जीवन के अस्तित्व का आधारभूत वर्ग है अर्थात् प्राकृतिक उत्पादन से जुड़ा बहुसंख्यक ग्रामीण एवं वनवासी वर्ग। यह वर्ग अपने जॉब में पारंगत है अर्थात शिक्षित है, सिद्धहस्त है लेकिन उसे निरक्षर कह कर आप उसे अपमानित करते है।

इसके समानान्तर आज जातीय संगठन समाप्त हो गए हैं यानी ये संगठन समाज के परंपरागत आरक्षित रोजगार के समर्थक नहीं रहे बल्कि किसी राजनैतिक दल के समर्थक और अन्य समाजों के साथ झगड़ा करने के समर्थक बन कर रह गए हैं। अतः जिस भारत में 'कोई नृपु होय हमें का हानि' की कहावत चलती थी, उसके पीछें जिस सामाजिक अर्थतंत्र की मजबुती थी वह तो अस्त-व्यस्त हो गया और आज पारिवारिक,सामाजिक [सांप्रदायिक। और प्रशासनिक तीनो स्तर की संस्थाएं असामाजिक तत्व बन कर रह गयी है। 

इसका कारण सिर्फ अववस्था है। न तो भ्रष्टाचार ही कोई मुददा है और न ही भारतीयों का नैतिक-पतन ही हुआ है।

इसका एकमात्र उपाय या तरीका व्यवस्थित तरीके से नया महाभारत [ वर्गीकृत संयुक्त भारत ] बसाया जाये।

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