प्रिय विद्यार्थियों ! मैं इस विद्युत मिडिया के माध्यम से पूरी दुनिया से सम्पर्क करने के लिए उपस्थित हुआ हूँ। पूरी दुनिया से सम्पर्क करने का यह प्रयास सफल होगा या नहीं, इस विषय में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता । संदेह के दो कारण हैं ।
शंका का एक कारण तो यह है कि पूरी दुनिया की जनसंख्या के अनुपात में इण्टर्नेट का उपयोग करने और उनमे फिर पढ़ने वालों की संख्या कितनी सी है, यह अनुमान लगाया जा सकता है।
दूसरा बिन्दू यह है कि इतनी सारी भाषाओं में इतनी सारी वेबसाईट्स हैं उनमें हिन्दी के ब्लोग्स पढ़ने वाले कितने होंगे ? हिन्दी में भी भरपूर वेबसाइट्स है, भीड़ में तूंती की आवाज कौन सुनेगा। ऐसी स्थिति में पूरी दुनिया में बैठे भारतीयों से तथा पूरी दुनिया के प्रबुद्ध लोगों से सम्पर्क करने कि बात सोचना शायद एक अतिशियोक्ति सी लगेगी। अतः सन्देह होना स्वाभाविक है।
इस तथ्य को इस तरह भी अभिव्यक्त किया जा सकता है कि ; 'भ्रष्टाचार की, उचित-अनुचित की और पाप तथा पुणय और न्याय व् अन्याय की अवर्गीकृत अव्यवस्था में सामूहिक सुनिश्चित परिभाषा नहीं होती।' 'प्रतेक गुण विकार सहित होता है क्योंकि एक विशेष काल-स्थान-पात्र के लिए गुण और विकार की विशेष परिभाषा होती है। अतः अगर हम एक सुन्दर और स्वर्ग समान जीवन शैली स्थापित करना चाहते हैं तो इसको सिर्फ एक 'व्यवस्था" शब्द पर ही केन्द्रित वाक्य में अभिव्यक्त कर सकते हैं :-
अव्यवस्था के परिणाम स्वरूप हमने भारत को भी नरक बना लिया है। भारत को पुनः स्वर्ग बनाने के लिए हमें सिर्फ एक सूत्री कार्यक्रम चलाना है और वह होगा "अव्यवस्थित भारत को एक साथ व्यवस्थित नहीं किया जा सकता अतः भारत के चारों कोनो से समसामयिक यथार्थ दृष्टिकोण वाले एक नए आधुनिक भारत का निर्माण करना होगा जहाँ वर्गीकृत व्यवस्था हो। उस व्यवस्था में विषमता नहीं बल्कि परस्पर समन्वय हो और सभी सुखी रहें। "
(1) पहला स्तर है व्यक्तिगत
(2) दूसरा स्तर है संस्थागत । संस्थागत स्तर में परिवार से लेकर राष्ट्र नामक संस्था के स्तर तक की सभी समस्यायें एक श्रेणी में आती है ।
(3) तीसरे स्तर की समस्याऐं मानवीय स्तर या वैश्विक स्तर या पृथ्वी ग्रह के जीव जगत के स्तर तक की सभी समस्याऐं एक ही श्रेणी की विषमताऐं है ।
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