सम्माननीय पाठक !

नमस्ते !

{ नः मः अस्ते अर्थात [आपके बिना और आपके सामने भी ] मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। }

बात सारगर्भित भी है तो कुछ लम्बी-चौड़ी भी है अतःबात को संपादित करके कहने हेतू अभी 10 ब्लोग बनाए हैं.

"GISM" नामक इस ब्लॉग को केन्द्र में रखें और यहीं से पढ़ना शुरू करें।

देवर्षि नारद के तीन ब्लॉग में से

"सामाजिक पत्रकारिता" में जातीय व् साम्प्रदायिक संरचना को विस्तार से बताने पर लेखन केन्द्रित रहेगा।

"नैतिकता की राजनीति" में लेखन पौराणिक,प्राचीन तथ्यों एवं प्रकृति निर्मित संविधान,क़ुदरत के क़ानून,Nature Created Constitution,Laws of natural order of things पर केन्द्रित रहेगा।

"निर्दलीय राजनैतिक मंच" में लेखन वर्तमान की समसामयिक बातों पर केन्द्रित रहेगा।

इन तीनों ब्लॉग्स को आप "कला संकाय" [Faculty of arts] के विषयान्तर्गत पढ़ें।

"मुनि वेदव्यास" के चारों ब्लॉग को धर्म एवं विज्ञान के विषयान्तर्गत पढ़ें। धर्म को अपने आप के प्रति कर्तव्य एवं अधिकार के रूप में लें और विज्ञान को आयुर्विज्ञान के अंतर्गत लें।

इन चारों ब्लॉग्स को "दर्शन एवं विज्ञान संकाय" [Faculty of Philosophy and Sciences] विषयान्तर्गत पढ़ें।

"प्रणय विज्ञान" नामक "कार्तिकेय" के ब्लॉग को "वैवाहिक जीवन और नैसर्गिक आनंद" विषयान्तर्गत पढ़ें।

अंतिम चरण का ब्लॉग है "भव्य महा भारत निर्माण" ! इस ब्लॉग को "अर्थशास्त्र संकाय" [Faculty of Economics] विषयान्तर्गत पढ़ें। लेकिन चूँकि यह ब्लॉग "सांख्य और सांख्यिकी" [Principle Knowledge and Statistics] तक सीमित नहीं है बल्कि साँख्य का योग-प्रयोग-उपयोग [Experiment &-Applying to use] करना है अर्थात "व्यावहारिक धरातल [Practical Ground] पर नव महा भारत का निर्माण" करने हेतु पढ़ें।

इस तरह प्रथम चरण में हमें ज्ञान मार्ग से ध्यान मार्ग [Meditative Concentration via Knowledge path] से चलना है अतः सात्विक-बुद्धि,बोद्धिसत्व का उपयोग करके बुद्धि के देवता को काबू में करना है तब फिर फ़तह ही फ़तह है। फ़ारसी में कहा है 'हिम्मते मर्दां मददे ख़ुदा'। अतः प्रथम चरण में अपनी अवधारणाओं को स्पष्ट करके,अपने आप में आत्मविश्वास बढ़ाने के कार्य से प्रारम्भ करें और पृथ्वी पर पुनः स्वर्ग बसाने के कार्य का श्री गणेश करें। अगले चरण स्वतः बढ़ते चले जायेंगे। बस नीयत होनी चाहिए नियति स्वतः लक्ष्य तक अवश करके धकेलती हुई पहुँचा देगी।

कृपया सभी ब्लॉग पढ़ें और प्रारंभ से,शुरुआत के संदेशों से क्रमशः पढ़ना शुरू करें तभी आप सम्पादित किये गए सभी विषयों की कड़ियाँ जोड़ पायेंगे। सभी विषय एक साथ होने के कारण एक तरफ कुछ न कुछ रूचिकर मिल ही जायेगा तो दूसरी तरफ आपकी स्मृति और बौद्धिक क्षमता का आँकलन भी हो जायेगा कि आप सच में उस वर्ग में आने और रहने योग्य है जो उत्पादक वर्ग पर बोझ होते हैं।

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

सभी विद्यार्थियों से आग्रह ! Insistence To All The Students !

विज्ञान के विद्यार्थी बंधुओं को विज्ञान के एक विद्यार्थी का नमस्कार, 
 प्रिय विद्यार्थी बंधुओं नमस्कार,

  • मानव मस्तिष्क की एक विशेषता होती है कि वह न सिर्फ एक जीवन में जीवनपर्यंत सीखता रहता है बल्कि जीवन-दर-जीवन ब्रेन का क्रमिक विकास भी होता रहता है। इस प्रक्रिया को आत्म-कल्याण की प्रक्रिया और इस विषय में किये जाने वाले प्रयास को आत्म-कल्याण हेतु किया जाने वाला कार्य कहा जाता है।  
  • आपने एक समस्या से खुद भी सामना किया होगा और दूसरों से भी सुना होगा कि "याद नहीं रहता"! अतः यह भी जान लें कि इस आत्म-कल्याण की परम्परा को स्मृति परम्परा भी कहा जाता है और धर्म-परम्परा भी इसी को कहा गया है। 
  • अनेक बार आप कहते हैं कि मुझे इसका ज्ञान तो था लेकिन समय पर यह बात मेरे ध्यान में ही नहीं आयी, अनेक बार आप कहते हैं कि मैंने उस बात की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। इस तरह यह स्मृति ध्यान-परम्परा के नाम से भी जानी जाती है।
  • आपने संस्कार शब्द भी सुना होगा। संस्कार एक तरह की प्रोसेस/प्रक्रिया है, इसको अवचेतन मन की स्मृति भी कहा जाता है अर्थात एक ऐसी स्मृति जो समय पर अनजाने में भी ज्ञान को ध्यान मे ले आती है। यदि किसी जानकारी का समय पर ध्यान नहीं आये तो ऐसे ज्ञान की उपयोगिता ही समाप्त हो जाती है। इसलिए संस्कार का महत्त्व है।
  • आप पुनर्जीवन की प्रक्रिया और मोक्ष के बारे में भी सुनते आये है। पुनर्जन्म के प्रति आपकी शंका इसलिए है कि जिस तरह प्रातः उठते ही आपको पिछले दिनों की स्मृति ताज़ा हो जाती है उस तरह पिछले जीवन की स्मृति ताज़ा नहीं हो पाती। 
  • अब आप इस बिंदु पर थोडा चिन्तन करें कि जब आपको दो-चार दिनों पूर्व की या कुछ महीनों या कुछ वर्षों पूर्व की स्मृति ही नहीं रहती है तो पूर्व जीवन की स्मृति कहाँ से रहेगी। 
  • आप भारत की जातीय परम्परा में ब्राह्मण को सबसे कुलीन जाति के रूप में भी जानते हैं...क्यों ! जबकि ब्राह्मण का अर्थ होता है जो ब्रह्म में रमण करता है। क्या ब्रह्म में रमण करने के लिए यानी अध्ययन के बाद विषय पर चिंतन-मनन करने के लिए किसी विशेष परिवार में पैदा होना पड़ता है ! हम सभी जीवन-पर्यंत कुछ न कुछ सीखते रहते हैं अतः विद्यार्थी भी हैं और चूँकि हमारे पास ब्रेन भी है और ब्रह्म में रमण भी करते हैं अतः हमें सबसे पहले तो अपने आप को ब्राह्मण मान कर चलना चाहिए और इस दिशा में आगे से आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
  • इस क्षेत्र में असंख्य विषय है अतः असंख्य दिशाएँ भी है इसी परिप्रेक्ष में ब्रह्मा के चारों दिशाओं में मुख दिखाये गये हैं।
  • आपको यदि स्मृति को मजबूत करना है तो इसका तरीका है आप किसी एक ही विषय में बँध कर उसे रटने का व्यर्थ या निरर्थक या अथक प्रयास करने के स्थान पर सभी विषयों का समान्तर Parallel और simultaneous समकालिक अध्ययन करें और एक-दूसरे विषय को ठीक उसी तरह गूँथ लें जिस तरह पहले धागा और बाद में उसी धागे से मछली पकड़ने का जाल गूँथा जाता है, तब आपकी स्मृति ज्ञान को ध्यान में बदल देगी। ठीक वैसे ही जैसे मछुआरा जाल को एक सिरे से थाम कर सैंकड़ों मछलियाँ पकड़ लेता है।चूँकि स्मृति का सम्बन्ध रूचि से होता है अतः यदि आपको पढ़ा हुआ याद नहीं रहता तो इसका अर्थ है उस विषय में रूचि नहीं है। रूचि पैदा करने के लिए एक ही तरीका है उस विषय से जुड़े सभी विषयों का अध्ययन एक साथ करें simultaneouslly करें किसी न किसी एक विषय में तो रूचि जागृत हो ही जायेगी तो सभी विषय याद रह जायेंगे।
  • स्मृति परम्परा के सामानांतर श्रुति परम्परा है अर्थात जो आपके पूर्ववर्तियों ने जाना है,खोजा है, Research, शोध, अनुसंधान, investigation किया है उसको सुनना या लिखा हुआ हो तो पढ़ना।ये दोनों परम्पराएँ उभयपक्षी Bipartite हैं अतः एक दुसरे की पूरक हैं।
  • इस तरह स्मृति व् संस्कार वाली ब्रह्म-परम्परा और श्रुति व् वैज्ञानिक खोज वाली वेद-परम्परा दोनों मिलकर अद्वेत हो जाती है।
  • आप यदि जीवविज्ञान और आयुर्विज्ञान के विद्यार्थी हैं अथवा रह चुके हैं अथवा इस विषय के जॉब से जुड़े हैं अथवा इस विषय में रूचि रखते हैं तो आप इन ब्लॉग्स पर विजिट करें तथा इस पोस्ट की  कॉपी करें और अपने परिचितों को भी भेजें। वेदव्यास के ब्लॉग्स का अध्ययन करने के बाद जीवजगत और आयुर्विज्ञान के साथ-साथ जीवन-काल और जीवन के बाद पुनः जीवन की प्रक्रिया के एक-एक बिंदु को आप सुस्पष्ट समझने में समर्थ हो जायेंगे।    


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 विभिन्न सरकारी सेवाओं में जाने के इच्छुक विद्यार्थियों से ! To the Students considering a career in various government services !

       प्रिय विद्यार्थी बंधुओं,        नमस्कार !

  • आप यदि इसलिए पढ़ रहे हैं कि आपको सरकारी सेवा में लिया जाये तो निःसन्देह आप सरकारी सेवाओं में आरक्षण के समर्थन या विरोध में कुछ न कुछ विचार अवश्य करते होंगे।
  • भारत में जब बर्तानियाँ सरकार ने सरकारी सेवाओं के लिए भारतीयों को आमन्त्रित किया तब किसी ने भी उसमें रूचि नहीं ली। कारण यह था कि सभी लोग अपने अपने जातिगत जॉब में लगे थे, जो उनके लिए पीढ़ी दर पीढ़ी स्थाई-तौर पर आरक्षित रोज़गार था, कोई भी बेरोज़गार नहीं था।
  • जब विशेष झाँसा दिया गया तब उनका तर्क था कि अगर हम नौकरी में आ जायेंगे तो दो समस्याएँ पैदा होंगी। एक यह कि हमारी अगली पीढ़ी क्या करेगी ! दूसरी यह कि बुढ़ापे में हमारा क्या होगा !
  • तब उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद दो लाभ देने की बात कही, 1. घर के किसी भी एक सदस्य को उसी विभाग में नौकरी देना 2. सेवानिवृत्ति वेतन Retirement Pension देना।
  • कुछ समय बाद जब एक तरफ बेरोज़गारी फैली और दूसरी तरफ सेवाकर्मियों का पश्चिमी पहनावा दिखा, तब सरकारी सेवा आकर्षित करने लगी। 
  • वे तो व्यापारी थे अतः उनकी गणना अलग तरीके की थी लेकिन जब सत्ता हस्तान्तरण हुआ और भारत के राजनीतिज्ञों के पास सत्ता आई तो न सिर्फ भाषा बल्कि गणना भी बदल गयी।
  • एक समय था जब हर घर में गाय थी और सोने-चाँदी के आभुषण थे लेकिन जब राजनीति में नव बौद्धिक वर्ग आया तो वह ग़रीबी को भी भारतीयों की ज़िम्मेदारी मानने लगा और बेरोज़गारी से त्रस्त वर्गों को दलित,पिछडा हुआ इत्यादि कह कर स्वयं को मसीहा साबित करने लगा और इस तरह समस्या को दिशाहीनता में उलझा दिया।
  • अब आप सभी जो जो आरक्षण के समर्थक और विरोधी है उनको यह समझना चाहिए कि आप किसी न किसी जाति से सम्बन्ध रखते हैं और हर जाति का एक परम्परागत जॉब है जिसमें वह निपुण, दक्ष और पारंगत है।
  • हर रोज़गार दो भागों में विभाजित है। एक है निजी Self-employed स्वरोज़गार, दूसरा है उसी विषय के सरकारी विभाग में सेवाकर्मी।
  • निजी रोज़गार में भी गृह-उद्योग से लेकर भारी औद्योगिक इकाईयों के मालिक से लेकर श्रमिक तक, या प्राकृतिक उत्पादन में कृषि-श्रमिक से लेकर भूस्वामी तक विभिन्न स्तर होते हैं।
  • इसी तरह उतने के उतने सरकारी विभाग हैं जिनमे भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर सचिव तक विभिन्न स्तर हैं।
  • इसी तरह उन विभागीय मंत्रालयों में राजनेता मंत्री होते हैं।
  • अब आप एक ऐसी व्यवस्था की कल्पना करें कि या तो आप वैवाहिक संबंधों तक में जाति के बंधन से मुक्त हो जाते हैं या फिर एक ऐसी आरक्षण प्रणाली बनायी जाए कि जो जिस विषय-विशेष की जाति से सम्बन्ध रखता है या रखना चाहता है रख सकता है यानी जाति-परिवर्तन कर सकता है लेकिन वह चाहे तो स्वतन्त्र स्वरोजगार में हो या उसी विषय विशेष के सरकारी विभाग में जाना चाहे या फिर राजनीति में जाना चाहे उसके लिए वह विषय-विशेष आरक्षित होगा।
  • न तो नयी पीढ़ी को शिक्षा,संस्कार के लिए और फिर रोज़गार के लिए विभिन्न विषयों भटकने की आवश्यकता होगी और न ही जीवन भर के अनुभव को लेकर सेवानिवृत होने का दु:ख होगा। अपने लिए काम करना चाहें तो स्वरोजगार में और समाज के लिए करना चाहें तो सरकारी सेवा में।
  • इस तरह भ्रष्टाचार का अर्थ होगा अपनी ही जात-बिरादरी से धोखा।
  • शुद्ध आचार-विचार का अर्थ होगा अपने विभाग,मंत्रालय और जाति-बिरादरी को सुरक्षित, संरक्षित और समृद्ध करने में अपनी योग्यता का उपयोग करना क्योंकि तब अपनी अगली सन्तति की समृद्धि का दायित्व भी तो जुड़ जायेगा।
  • इस तरह यदि आप सामाजिक कार्यों में रूचि रखते हैं तो इन ब्लॉग्स पर नियमित विज़िट करें और इस पोस्ट की कॉपी करके आगे से आगे मेल करें।

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राजनीति के सक्रिय विद्यार्थी [कार्यकर्त्ता] बंधुओं । Students who remain active in politics.


  • भारत को उत्सवों एवं त्यौहारों का देश का देश कहा जाता है। वैवाहिक आयोजन भी त्यौहार की तरह उत्साह से मनाया जाता है। ये सभी आयोजन मेल-मिलाप के ऐसे आयोजन होते हैं जिनमे मेरे जैसा एकांत प्रिय आत्म-केंद्रित व्यक्ति भी मिलनसार बनने के लिए मजबूर हो जाता है। भारतीयों के इस स्वभाव के कारण भारत हथाई-प्रधान देश भी है,जिस कारण यहाँ तुरन्त मोबाईल क्रान्ति हो गयी।
  • जब चुनाव होते हैं तो अधिकाँश लोग उत्साह से सक्रिय हो जाते हैं अतः यह आयोजन भी त्यौहार की तरह ही है और इसी कारण राजनैतिक दलों को सक्रिय कार्यकर्ता भी सुगमता से मिल जाते हैं। 
  • आप किसी दल विशेष के स्थायी कार्यकर्ता हैं तो आप धैर्य से सोचें कि आपके कुछ क्षुद्र स्वार्थों के कारण आपके क्षेत्र और पूरे देश को कितना बड़ा नुकसान हो रहा है। आप को अपने दल की पड़ी रहती है और आज भी विश्वगुरु बनने की योग्यता रखने वाला जीवन्त और युवा भारत कृशकाय सा पड़ा है जो तब कुछ-कुछ हिलता डुलता सा नजर आता है जब कोई मूर्खतापूर्ण साम्प्रदायिक वैमनस्य पैदा हो जाता है।
  • दुनिया के अन्य सभी राष्ट्रों में शासन-प्रशासन को हर समय कमर कसे हुए रहना पड़ता है वर्ना आर्थिक,सामाजिक,साम्प्रदायिक और नस्लीय समस्याओं के कारण सर्व-साधारण में तरह-तरह के विद्रोह उभर जाते हैं लेकिन भारत में जब इनकी आँच आती है तो उलटा होता है, यहाँ तो सर्व-साधारण की समझ व सहनशीलता के कारण ही ये मूर्खतापूर्ण आवेश स्वतः ठन्डे पड़ते है जबकि राजनैतिक दल तो इस तरह की आँच का उपयोग अपनी-अपनी रोटियाँ सेकने में करने लग जाते हैं। ऐसी स्थिति में आप विद्यार्थी ही इस समय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और एक जनतांत्रिक क्रान्ति ला सकते हैं।
  • माना कि आपको अपना पूरा ध्यान पढाई में देना चाहिए लेकिन पढाई का अंततः उदेश्य क्या होता है! ब्रेन का विकास करके खुद भी सुन्दर जीवन जीना और समाज का बौद्धिक नेतृत्व भी करना। लेकिन आप ब्रेन को विकसित करने से उलट रटन्त-विद्या अपना रहे हैं और नौकर, सेवक, दास, वेतन-भोगी बंधुआ मजदूर, तनखैया बनने की आकांक्षा पालते हो।
  • आप यदि मानवीय धर्म[मानवीय दायित्व और अधिकार] को धारण करके जीवन की सच्चाई को जानकर शान्ति और आनन्द से रहना चाहते हैं और अपने अन्दर के सृष्टम[system] को संचालित करने वाले भाव के सहारे अपना विकास करके दुनिया का हित करने वाला रोजगार चाहते हो तो आपको चाहिए आप प्रथम स्तर पर राजनैतिक धर्म को समझें, Political Liability निभाएं और इन्टरनेट के माध्यम से रचनात्मक कार्य करें और इस सन्देश को आगे से मेल करें और प्रथमतः भारत में निर्दलीय राजनैतिक प्रणाली को पुनः प्रतिष्ठित करें।
  • जब वैमनस्य फैलाने वाले इन्टरनेट के माध्यम से विध्वंसकारी कार्य करवा सकते हैं तो आप उसकी जवाबी कार्यवाही में रचनात्मक कार्य क्यों नहीं करवा सकते। इस निर्दलीय राजनैतिक प्रणाली में उन  स्थापित राजनेताओं का अहित नहीं होगा जो राष्ट्र के, देश व समाज के हित में कुछ रचनात्मक कार्य करने के लिए राजनीति में आये हैं बल्कि वे अधिक अधिकार के साथ काम कर सकेंगे अतः यह स्थापित व्यवस्था और स्थापित नेताओं के प्रति विद्रोह नहीं बल्कि उनको मजबूती देने हेतु है ताकि वे पूंजी,पूंजीपतियों और असामाजिक तत्वों के वर्चस्व से मुक्त होकर समाज के हित में कुछ रचनात्मक कार्य कर सकें।
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  • इसे जो भी पढ़ रहे हैं उन्हें यह जानना चाहिए कि भारत में अन्य राष्ट्रों की तुलना में सब कुछ ठीक-ठाक  चल रहा है और चलता रहेगा। लेकिन यदि सभी भारतीय इस ठीक-ठाक चल रही स्थिति को ठोक-बजाकर बहुत अच्छी, सर्वोत्तम, The best बनाना चाहते हैं तो मैं एक अध्ययनशील विद्यार्थी की श्रद्धा के साथ न सिर्फ एक मार्ग बता रहा हूँ बल्कि लक्ष्य तक पहुँचा भी दूँगा। लेकिन इस विषय में दो अड़चनें आ सकती हैं।
  • एक तो यह कि क्या राष्ट्र के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति से लेकर विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका, पत्रकारिता, उद्योग-व्यापार,राजनीति और सभी सरकारी गैर-सरकारी संस्थाओं से सम्बन्ध रखने वालों से लेकर, आप खुद भी, व्यक्तिगत स्तर पर एक दूसरे को कोसना बन्द करके किसी सार्वभौमिक सत्य, Universal truth पर आधारित व्यवस्था पर क्या एकमत हो पायेंगे !
  • दूसरी अड़चन यह आयेगी कि यदि सार्वभौमिक सत्य बताने वाला एक साधारण व्यक्ति हो, तो सर्वसम्मति बनाने के लिए एक अतिसाधारण कहे जानेवाले व्यक्ति को इतना महत्त्व दे पायेंगे, कि उसकी कही बात को प्रचार-प्रसार करके उस पर वार्ताओं का दौर चला सकेंगे ! शायद नहीं ! फिर भी मेरा धर्म यह बनता है कि मैं प्रयास करूँ।
  • अपनी बात सम्पादित करके कहने के लिए मैंने अभी कुल 10 ब्लोग्स की यह श्रृंखला बनाई है। इन ब्लॉग्स के माध्यम से मैं एक एक बिंदु को स्पष्ट करते हुए पूरी बात सुस्पष्ट करने का प्रयास करूँगा।
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कॉपी करके भेजने की सुविधा के लिए सभी पते एक साथ.

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  1. इन ब्लॉग्स पर क्लिक करें और विज़िट करें| आप भी विज़िट करें और आपके पास जितने भी mail address हैं उन सभी पर भेजें और इस स्वतंत्रता स्वाधीनता आन्दोलन को लक्ष्य तक पहुचाएं| आप 'वैश्विक बौद्धिक विद्यार्थी आन्दोलन' नामक पहले ब्लॉग को अपने ब्लॉग्स,फ़ेसबुक,ट्विटर इत्यादि पर साझा करें। आप g+ account खोल कर इन ब्लॉग्स को जोड़ लेंगे तो नई पोस्ट की सूचना आपके खाते में अपने आप मिलती रहेगी| निःसंदेह आप व्यस्त रहने वालों में हैं लेकिन स्थायी सुख के लिए थोड़ा तप तो करना ही चाहिए। 
  2. ब्रह्मपुत्र घाटी और पूर्वांचल का क्षेत्र विश्व का एक मात्र मातृसत्तात्मक संस्कृति का बचा हुआ क्षेत्र है और जब कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना के अंत में पृथ्वी पर वनस्पति,प्राणी और मानव नस्लें विलुप्ति की कगार पर आ जाती हैं तब यही एकमात्र स्थान बचता है जहाँ सभी नस्लों,प्रजातियों,स्पीशीज़ के बीज सुरक्षित रहते हैं। अतः यहाँ किसी भी नस्ल को असुरक्षित करना और पुरुष प्रधान व्यवस्था को नारी प्रधान व्यवस्था पर हावी होने देना दोनों ही भयानक अमानवीय कृत्य कहलायेंगे। आप जो भी इस कमेन्ट को पढ़ रहे हैं उनसे निवेदन है कि कृपया वे इस ब्लॉग श्रृंखला के address को पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यार्थियों तक पहुचाएँ। 
  3. भारत के सामने हमेशा से दुविधापूर्ण स्थिति रही है| एक समय था जब सिख समुदाय भारत की नाक और माथे का टीका हुआ करता था, एक भिड़रावाले के कारण आज पूरे सिख समुदाय को बड़ी क़ीमत चुकाने के बाद भी वह स्थान पुनः नहीं मिल सका जो कभी हुआ करता था| जबकि वो तो हिंदुओं की ही एक शाखा है! यदि इसी तरह चलता रहा तो मानकर चलें कि मुट्ठी भर कुछ लोगों के कारण पूरे भारत मे गुजरात जैसी स्थिति बन जाएगी| जिस तरह भिंडरावाले के सामानान्तर राजनेता का भी हाथ था उसी तरह इन मुस्लिम कट्टरपंथियों के समानांतर भी राजनीति का हाथ रहता है अतः राजनीति को सुधारना भी आवश्यक हो जाता है। समन्वय और सहनशीलता के आचरण से पहचाने जाने वाले भारत मे यह सब दुर्भाग्यपूर्ण है अतः एक ऐसी राजनैतिक क्रांति की आवश्यकता है जो भारत की राजनीति को दलदल मुक्त करे। तब हम जनप्रतिनिधियों से यह अपेक्षा कर सकते हैं कि वे सांप्रदायिक वैमनस्य मिटाने के लिए ईमानदारी से प्रयास कर सकेंगे। 
  4. एक स्थान पर पढ़ने में आया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के एक मुस्लिम नेता ने यह आशंका जताई है कि "यूरोप से नाजी आन्दोलन की तरह का एक Movement चलेगा, अबकी बार उसका ध्येय मुस्लिमों का सफाया होगा"। इसी तरह सामरिक विषय के विशेषज्ञों का आँकलन है कि अबकी बार विश्वयुद्ध हुआ तो मुस्लिम राष्ट्रों और अमेरिकी नेतृत्व के बीच होगा। ये आँकलन विषय-विशेषज्ञों का है जिसकी सम्भावना बनती है लेकिन सहज बुद्धि का कहना है कि दोनों ही स्थिति में यदि सुरक्षित रहेंगे तो सिर्फ भारतीय मुस्लिम, अतः मुस्लिम-विद्यार्थियों से भी में विशेष तौर पर अनुरोध करता हूँ कि वे निर्दलीय आन्दोलन में जुट जाएँ। तब न सिर्फ आप और अधिक सुरक्षित हो जायेंगे बल्कि इस तरह के विकृत आन्दोलन की संभावना ही समाप्त हो जाएगी।
  5. अंततः यह कहना है कि जानकारी के संग्रह के लिए आप कितना पैसा और समय खर्च करते हैं! यहाँ मैं अपना खर्च करके आपको एक ही स्थान पर बिना कुछ शेष रखे सभी विषयों कि जानकारी निःशुल्क उपलब्ध करा रहा हूँ। अतः आपसे इतनी अपेक्षा तो कर ही सकता हूँ कि आप इस संदेश को Email के माध्यम से आगे-से-आगे भेजेंगे ताकि सभी विद्यार्थियों को यह जानकारी उपलब्ध हो सके।
  6. विशेषकर लड़कियों से कहना है कि भारत की मूल परम्परागत जीवन-शैली और मान्यताओं में नारी का स्थान सर्वोच्च रहा है। यहाँ पूर्वोत्तर भारत विश्व का एकमात्र नारी सत्तात्मक समाज है और मानव सभ्यता का पुनरुद्धार भी बारम्बार यहीं से होता आया है। भारत में ब्रह्म-परम्परा की परिवार-व्यवस्था रही है जिसमे नर-नारी को परस्पर पूरक और अद्वेत माना है। परिवार में समान अधिकार दिए गए हैं। पुरुष प्रधान समाज व्यवस्था तो मुस्लिम और पश्चिमी समाज के संपर्क में आने के बाद लगे संग-दोष का परिणाम है। हमें भारत में अपनी मूल परम्परागत पारिवारिक-सामाजिक व्यवस्था बनानी है।
  7. चूँकि ब्रह्म-यज्ञ में कर्म का रूप सोचना[अध्ययन-चिन्तन-मनन] ही होता है, अतः आपको सिर्फ इतना ही करना है कि इस लेखन को सभी के अध्ययन हेतु प्रचारित प्रसारित करें और एक सामूहिक अवधारणा/Concept विकसित कर लें तो आप बिना संवाद के ही समसामयिक विषयों पर सभी में एक-समान दृष्टिकोण View angle को विकसित पायेंगे इसी को योगियों [योग्य व्यक्तियों] का मध्यम मार्ग कहा जाता है। 
  8. अतः अन्ततः मैं लड़कियों से अपेक्षा करता हूँ कि वे इस ब्लॉग श्रृंखला से पूरे भारत की और विशेषकर पूर्वोत्तर भारत की महिलाओं का परिचय कराएँगी।      

          धन्यवाद! 
        आपका शुभेच्छु! 
        बृज मोहन वशिष्ठ। 

         ॐ तत सत !