वर्तमान के हालात जितने ख़राब हैं उतने आप को महसूस नहीं हो रहे हैं। जबकि आप भ्रष्टाचार के जिन बिन्दुओं को महत्वपूर्ण मान रहे हैं, वे इतने तुच्छ हैं कि इन बिन्दुओं को अनावश्यक तूल देना कहूँ तो भी मुझे संकोच नहीं होगा।
इस सन्देश के माध्यम से मैं यह स्पष्ट करने का प्रयास कर रहा हूँ कि निकट भविष्य कितना भयावह होने जा रहा है। यदि समय पर चेतन नहीं हुए तो यह विकसित सभ्यता भी उसी तरह नष्ट हो जायेगी जैसा होता है।
वर्तमान की यह विकसित सभ्यता नष्ट ना हो जाये एकमात्र यही आपकी चिन्ता का विषय नहीं होना चाहिये। आपकी चिन्ता और साथ में चिन्तन का विषय यह भी होना चाहिये कि आपकी पीढ़ियाँ नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो जायेंगी। जबकि यदि हम परस्पर एक दुसरे पर तुच्छ स्वार्थों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगाने वाली वृति [ धन्धे ] को त्याग कर समन्वय की नीति वाली प्रवृति अपनालें तो न सिर्फ यह भौतिक विकास स्थायी रह सकता है बल्कि जीवन के सनातन लक्ष सुख [ सचिदानन्दघन ] की स्थिति सभी को सुलभ हो ऐसा प्रबन्धन कर सकते हैं।
और सच्चाई सच्चाई होती है, मानने न मानने पर वास्तविकता प्रभावित नहीं होती, सच्चाई यह है कि हमारा स्थाई निवास यह धरती ही है। अव्यक्त में तो हम सिर्फ उन्हीं भावों में भावित रहते हैं जो भाव इस कलेवर Cadre, Cover को छोड़ने के समय रहते हैं, जबकि उन भावों की अभिव्यक्ति तो पुनः व्यक्ति बन कर व्यक्त जगत में आते हैं तभी कर पाते हैं।
जबकि आप का तो भ्रष्टाचार मिटाने का बिन्दु ही उलटा है । आप की कल्पना है कि भ्रष्टाचार मिटाने से विकास की गति तेज़ होगी लेकिन यह आपका अज्ञान (ग़लत जानकारी) है क्योंकि आप तो विनाश की गति तेज करने का काम करेंगे जिसे विकास नाम दे दिया गया है ।
कल्पनाषील नैत्रित्व यानी अपना नैत्रित्व स्वयं करें ।
मैंने अनेक बार समसामयिक लेखों में, उनके लेखकों द्वारा यह आशावादी विचार पढ़े कि वर्तमान भारत तभी बच सकता है जब कोई कल्पनशील नेतृत्वकर्ता प्रशासन की बागडोर सँभाले। जो अतिवादी शब्द का उपयोग करते हैं वे अवतार की प्रतीक्षा में बैठे हैं।
भगवान ने आपकी सुनली ! मैं इस चैप्टर के माध्यम से आपके मानसिक नेत्रों के सामने एक ढाँचा बनाकर दे रहा हूँ, जो पूरी तरह सन्तुलित है अतः यह सभी वर्गो को प्रिय भी लगेगा और उचित भी होगा । सभी की अपेक्षाएँ पूरी करने वाला और सभी दृष्टिकोण से हितकारी होगा अर्थात सर्व-कल्याणकारी होगा।
यह ढाँचा राष्ट्र निर्माण के दोनों पहलुओं को समान रूप से सन्तुलित करेगा। एक पहलू है चरित्र निर्माण एवं दूसरा पहलू है आर्थिक समृद्धि। बिना चरित्र निर्माण के आर्थिक समृद्धि उल्टा नुकसान पहुचाती है।
भारत को कितना ही लूटा जाये भारत की अर्थव्यवस्था पर ऐसा कुछ भी असर नहीं पड़ता है जिसे हम बर्दास्त नहीं कर सकें। बशर्ते सिर्फ ऐसी व्यवस्था पद्धति बना दी जाए कि जो वर्ग भूमि पर सोना उगाते हैं उन्हें ना लूटा जाये। भलेही पेड़ पर पैसा [मुद्रा ] नहीं लगाती है लेकिन फल तो पेड़ पर ही लगते हैं और धन-धान्य प्राकृतिक उत्पादन का ही पर्याय होता है।
मैं नैतृत्व करने के लिए सड़क पर नहीं आने वाला और ना ही आपको सड़क पर आने के लिये कहने वाला हूँ। मैं तो वैसा मार्ग बताने वाला हूँ जिसमे आपके नेत्र खुले रहें और किसी के अन्धानुयायी,अंधभक्त नहीं बन कर अपना नेतृत्व स्वयं कर सकें। किसी भी प्रकार के वाद में बन्ध कर वाद-विवाद में नहीं उलझ कर सर्व-सम्मति से निर्णय पर पहूंच सकें।
ऊँ तत् सत्
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