इस में धर्म एवं विज्ञान का मूल साहित्य रचा हुआ है। धर्म एवं विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में शब्दों का अर्थ सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। संस्कृत के शब्दों का अर्थ देवनागरी लिपि तथा हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओँ के माध्यम से जितना स्पष्ट होता है, अन्य विदेशी भाषाओं में सम्भव नहीं है। अतः इस ब्लॉग श्रृंखला का एक उदेश्य अन्य भाषाओं के साथ साथ हिन्दी का प्रचार-प्रसार स्वतः पूरा होता है।
हिन्दी भाषा एवं देवनगरी लिपि के माध्यम से बताने की मेरी मजबूरी के कारण देवनागरी लिपी एवं हिन्दी भाषा में मैं गीता की व्याख्या कर रहा हूँ अतः स्वतः ही संस्कृतजन्य हिन्दी भाषा का प्रचार होगा।
अतः जो सज्जन हिन्दी के प्रचार-प्रसार के इच्छुक हैं, उनसे अपेक्षा करता हूँ कि वे इस ब्लॉग श्रृंखला के माध्यम से इस आन्दोलन के प्रचार-प्रसार में सहयोग देंगे। विशेषकर हिन्दी भाषी क्षेत्र के किशोरों एवं नवयुवाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
इसके साथ मैं यह भी चाहता हूँ कि अन्य भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं में तथा अंग्रेजी एवं अन्य राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय भाषाओं में भी इसका अनुवाद हो ताकि अन्तर्राज्यीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व की सबसे अधिक संस्कारित तथा प्रथम धार्मिक-वैज्ञानिक भाषा संस्कृत के शब्दों का प्रचार-प्रसार हो। इसका तरीका है अन्य भाषाओं में जब अनुवाद हो तब साथ-साथ में धार्मिक-वैज्ञानिक शब्दावली के मूल शब्द जो देवनगरी लिपि में, संस्कृत के हैं उन्हें उसी रूप में लिखा जाये।
कोई भी सज्जन यदि किसी क्षेत्रीय भाषा एवं लिपी में अनुवाद करने का इच्छुक हो और ऐसा श्रम कर सकता हो तो सम्पर्क करें। ब्लॉग्स में रूपांतरण की सुविधा है लेकिन अन्वय-समन्वय करना आवश्यक होता है। जो विद्यार्थी विद्या का उपयोग समाज हित में करेगा तभी समाज उसे अपना निर्दलीय जन प्रतिनिधि चुनेगा अथवा आप यदि स्वयं सक्रिय राजनीति में नहीं आना चाहें तो आपके समर्थन को वे विशेष दर्जा देंगे।
मेरा मानना है आज नहीं तो कल वैज्ञानिक भाषा के रूप में विश्व में लेटिन के स्थान पर संस्कृत शब्दावली अपनाना आवश्यक हो जायेगा। बस प्रारम्भिक अवस्था में हिन्दी के प्रति श्रद्धा रखने वाले, हिन्दी के प्रति राग-अनुराग रखे बिना और अन्य भाषाओं से द्वेष रखे बिना,सभी भाषाओं में अनुवाद करें,विशेषकर भारतीय भाषाओं में अनुवाद अवश्य करें और इस आन्दोलन के सहयोगी बनें।
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