1. साकार 2. निराकार
साकार व्यक्तित्व है शारीरिक रूप, रंग, लम्बाई, मोटाई, नैन-नक्श, वज़न, नर-मादा इत्यादि मापदण्ड। ये सभी आकार सहित हैं अतः स-आकार[साकार] व्यक्तित्व है।
निराकार व्यक्तित्व वह व्यक्तित्व है जो आपकी मानसिकता को व्यक्त करने वाला व्यक्तित्व है, आन्तरिक व्यक्तित्व है।
चुंकि दोनों ही व्यक्तित्व हैं अतः ये व्यक्त होते हैं।
साकार व्यक्तित्व शरीर का भौतिक स्वरूप है, जिसे देह कहा जाता है।यह पञ्च महाभूतों के संयोग से बना है। जिनमें तीन तो वे हैं जो पदार्थ की तीन अवस्थाऐं हैं।
1. पृथ्वी (ठोस) (भार) नापने की ईकाई (ग्राम)
2.जल (द्रव) (आयतन) नापने की ईकाई (लीटर)
3. वायु (गैस) (दाब) नापने की ईकाई (आयतन + भार )
4. अग्नि (स्वतन्त्र इलेक्ट्रोन) (तापक्रम) नापने की ईकाई (सेण्टीग्रेड) ।
5. आकाश (स्थान-क्षेत्र) (दूरी) नापने की इकाई (मीटर)
(चौथा वह परमाणु से मुक्त स्वतन्त्र इलेक्ट्रोन और फ़ोटोन है जिसे हम ऊष्मा प्रकाश या ऊर्जा कहते हैं,उसी को अग्नि कहा गया है।)
(पाँचवां यह विशाल क्षेत्र या स्थान है जो दूरी के रूप में व्यक्त होता है जिसे आकाश कहा गया है।)
पाँच भौतिक आधारों से बना व्यक्तित्व आपकी देह के आकार के रूप में व्यक्त होता है जबकि सोच आपका निराकार व्यक्तित्व है जो आपके आचरण से व्यक्त होता है। यह आचरण तीन रूपो का मिला-जुला रूप है जिन्हें कहा गया है:-
1.मन
2.बुद्धि
3.अहंकार
आपका आन्तरिक निराकार व्यक्तित्व तभी व्यक्त होता है जब आप अपने मन-बुद्धि-अहंकार को व्यक्त करते हैं।
मेरे बाबा[जो मेरे दादा थे], मेरे गुरू, शिक्षक,संरक्षक और सखा भी थे। उनके मुँह से एक वाक्य अक्सर सुनता था।
मूर्ख और विद्वान के सींग-पूंछ नहीं होते कि उन्हें उनके आकार को देख कर पहचान सको कि यह मूर्ख है और यह विद्वान है। इसका पता तो तब चलता है जब वे कोई काम करते हैं या बोलते हैं।
मन-बुद्धि-अंहकार के संयोग से पाँच तरह के मानसिक या आन्तरिक व्यक्तित्व उभर कर आते हैं। अतः हम यह भी कह सकते हैं कि मानव पाँच वर्गो में वर्गीकृत होता है।
(1) साधारण वर्ग:- इसे जनरल केटेगरी, आम आदमी, जन साधारण कहा जाता है। जिन्हें संस्कृत में साधु कहा गया है जिसका अर्थ है सीधा-सादा यानी आमजन, साधारण शासित वर्ग। इस वर्ग में से तीन वर्ग उभर कर आते हैं जो इस साधु वर्ग को संचालित करने की सत्ता अपने हाथ में लेना चाहते हैं। ये तीन सत्ताऐं या शासक वर्ग हैं।
(2) बौद्धिक-सत्तावर्ग।
(3) राजकीय सत्ता वर्ग।
(4) आर्थिक सत्ता वर्ग।
ये तीनों सत्ताऐं प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को साधारण से ऊपर उठकर असाधारण बनना पड़ता है या विशिष्ट बनना पड़ता है।
इन चारों के अलावा एक वर्ग और होता है जो वर्ग में वर्गीकृत तो होता है लेकिन समूह में नहीं रहता, अकेला रहना पसन्द करता है। अतः उस वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को किसी वर्ग-विशेष में वर्गीकृत कराना पसन्द नहीं करता। ‘एकला चलो‘ की नीति अपनाता है। लेकिन फिर भी उसके वर्ग का नाम है।
(5) मनीषी वर्ग।
मनीषी वर्ग, साधारण नहीं होते हुए भी सत्ता से परहेज करता है।
पहला वर्ग शासित वर्ग है।
दूसरा, तीसरा, चौथा वर्ग शासक वर्ग है।
पाँचवाँ मनीषी वर्ग आत्म-अनुशासित वर्ग होता है।
भारत-भूमि इस पाँचवें वर्ग को उत्पन्न करने के लिये उपजाऊ भूमि है,यानी भारत में यह वर्ग बहुसंख्यक है। व्यक्तिगत स्तर पर जितना अनुग्रह हो सके करता है। लेकिन विडम्बना यह है कि इस वर्ग की प्रकृति ही ऐसी है कि विषमता पैदा होते ही यह अपने आप को रिज़र्व कर लेता है, विषमता में उलझता नहीं।
भारतीय समाज विश्व का सबसे पुराना सभ्य सुसंस्कृत समाज रहा है। भारत के वर्तमान इतिहास के विगत 2700 वर्ष का अर्थात् बुद्ध एवं महावीर के काल से वर्तमान तक के काल खण्ड का अवलोकन करें तो यह तीसरी बार हो रहा है कि मनीषी वर्ग हाशिये पर आ गया और वित्तेश वर्ग अन्य चारों वर्गों पर हावी हो गया है। अतः मानव सभ्यता के पुराने न मापे जाने वाले इतिहास में तो पता नहीं कितनी बार ऐसा हुआ होगा कि मनीषी वर्ग हाशिये पर आया होगा।
भारत की आज़ादी के एक दशक बाद ही बहुत तेज़ी से मनीषी नामक मानसिक प्रजाति लुप्त होने लगी। आज यह स्थिति है कि यदि इसका सम्बन्ध शरीर विज्ञान के जेनेटिक विज्ञान से होता तो यह भी कहा जा सकता था कि यह प्रजाति बाघ की तरह विलुप्ति के कगार पर है। लेकिन चुंकि मनीषी एक मानसिक प्रजाति है अतः मानसिकता में परिवर्तन के साथ ही प्रजाति में परिवर्तन हो जाता है। अब यदि इस विलुप्त होती जा रही मानसिक प्रजाति के नवयुवा वर्ग का विकास हो, तत्पश्चात् वे नेतृत्व के लिये आगे आयें, तब तो मेरे लेखन का परिचय का अर्थ (लाभ) है वर्ना .........।
अभी इन असाधारण प्रतिभाओं वाले विशिष्ट लोगों के सामने मुझे अपना परिचय देते हुए और मुझे अपना थोबड़ा दिखाने में भी शर्म आती है। सोचता हूँ कहीं ऐसा नहीं हो कि मेरी परियोजना Project, उद्धेश्य Object विषय Subject और अवधारणा Concept नकार दिया जाये और मैं अपमानित महसूस करूँ। इससे तो अच्छा है प्रतिक्रिया नहीं होने पर ब्लोग्स चुपचाप बन्द कर दूँ।
मैं यदि अपना परिचय दूँ तो सबसे पहले मुझे मेरी शिक्षा-दीक्षा के बारे में पूछा जायेगा। मैं विज्ञान की परम और परः अर्थात् सूक्षमतम से सम्पूर्ण तक की स्थिति को स्पष्ट करूँगा तो स्थापित वैज्ञानिक और विद्वान वर्ग मुझ से मेरी शिक्षा के बारे में नहीं, साक्षरता और डिग्री के बारे में पूछेगा मैं तो मान्यता प्राप्त लिट्रेट भी नहीं हूँ और मेरे पास दिखाने के लिए या बताने के लिए कोई ऐसी डिग्री भी नहीं है जो मुझे आजकल की इतनी सारी भारी भरकम डिग्रियों वाले जमाने में प्रतिष्ठित कर सके तब मैं उन्हें क्या जवाब दूँगा !
इसी तरह जब मैं धर्म, देवी-देवता,मान्यताऐं,प्रथायें,रीति-रिवाज़ की परम्पराओं के बारे में कुछ बताऊँगा तो स्थापित धार्मिक और ज्ञानी वर्ग पूछेगा कि ‘‘तूने दीक्षा कहाँ से ली‘‘! तब मैं उन्हें क्या जबाव दूँगा !
मेरी समस्या यह है कि न तो मैं विशेष पढ़ा लिखा हूँ अर्थात् बड़ी डिग्री, पद, प्रतिष्ठा कुछ भी तो नहीं है तो मैं क्या बताऊँ ? मैं कहीं भी तो विशेष वर्गीकृत समाज में प्रतिष्ठित नहीं हूँ। न ही मेरी कोई राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक, आर्थिक, बौद्धिक इत्यादि वर्ग में प्रतिष्ठा है और न ही मैं किसी बड़े पद पर काम कर रहा हू या कर चुका हूँ कि मैं अपना परिचय दूँ।
सिर्फ फ़ोटो छपवाकर और नाम बता देने से क्या लाभ हो जायेगा ? हाँ हानि अवश्य हो सकती है कि आप यह सोचने लग जायें कि ‘‘जिस आदमी की ख़ुद की कोई हैसियत नहीं है वह पूरे भारत और प्रत्येक भारतीय की हैसियत बढ़ाने के हेतु योग्य कैसे हो सकता है ?‘‘ क्योंकि हैसियत नापने का आपका पैमाना तो आखिर डिग्री, पैसा और प्रोपर्टी तथा पद इत्यादि हैं। अब जब मेरे पास इन में से कुछ भी नहीं है तो फिर परिचय देने का औचित्य ? फिर भी मैं अपना परिचय स्थान-स्थान पर दे रहा हूँ ताकि कहीं ऐसा नहीं हो कि आप मुझे फर्जी न समझ लें।
अभी मेरे उस परिचय पर मत जाइये जो साकार देह का प्रतिष्ठित व्यक्तित्व होता है। फ़िलहाल आप मेरे मन-बुद्धि-अहंकार वाले आन्तरिक एवं निराकार व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करें और मानव के अपने जीवन की सार्थकता क्या है, इस प्रश्न पर चिन्तन करें ! अपने आप के प्रति; तत्पश्चात् राष्ट्र के प्रति; तत्पश्चात् सर्वोच्च ऊंचाई पर जाकर ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘‘ के प्रति क्या करना है; इस विषय पर आयें !
मेरे परिचय का औचित्य इसलिए भी नहीं है कि मैं किसी विषय का विशेषज्ञ भले ही नहीं हूँ लेकिन जगत का ऐसा कोई भी विषय शेष नहीं बचा है जिस विषय के परम्-अर्थ को मैं नहीं जानता और न ही मेरी इस परियोजना में ऐसी कोई मानवीय और अमानवीय समस्या है जिसका निदान और समाधान नहीं है। अतः मेरा आप सभी [जो इन ब्लोग्स के माध्यम से मेरे सम्पर्क में आ रहे हैं] से कहना है कि सर्वप्रथम इस सोच को इसी दृष्टिकोण को, इसी नजरिये से प्रचारित प्रसारत करें। मैं भी यहीं हूँ, आप भी यहीं हैं। परिचय तो बाद में भी हो जायेगा। पहले आप मेरे उद्धेश्य को रेखांकित तो करें।
मैं अपनी शक्ल-सूरत नहीं दिखाने के अनेक कारण बना सकता हूँ जैसे कि इस हास्य-व्यंग्य में हैं। इसे आपने सुन रखा होगा।
मेहमान - मेरे लिए पैग मत बनाना ।
मेज़बान - कारण ?
मेहमान - कारण यह है कि पहली बात तो मैंने शराब छोड़ दी है, दूसरा कारण है : पत्नी ने मना कर दिया है । तीसरा कारण है कि माँ ने सौगन्ध दिला दी, चौथा कारण है आज अमावस्या है इस दिन हम लोग शराब नहीं पीते, पांचवाँ कारण है कि अभी मेरे पीने का समय नहीं हुआ है तथा अन्तिम और निर्णायक कारण यह है कि अभी-अभी मैं चार पैग लेकर आया हूँ अतः बिल्कुल नहीं चलेगी।
इसी तरह अपना परिचय देते हुए भी न देने के मैने कुछ कारण बताये, कुछ कारण और भी हैं लेकिन अन्तिम और निर्णायक कारण यह है कि मेरे ब्रह्म (ब्रेन) नामक गर्भ से कुछ चरित्रों का जन्म हुआ है, मैं अपने इन मानसपुत्रों से आपको मिलाता हूँ। यह अपना परिचय खुद देंगे। तो इनसे मिलें...
देवर्षि नारद से आप मिलेंगे 'सामाजिक पत्रकारिता', 'नैतिक राज बनाम राजनीति' तथा 'निर्दलीय राजनैतिक मंच' नामक तीन ब्लॉग्स में।
मुनि वेदव्यास से आप मिलेंगे 'विज्ञान बनाम धर्म','अहम् ब्रह्मास्मि', 'कृष्ण वन्दे जगत गुरुं' ,'शिवोहम' नामक चार ब्लॉग्स में।
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