पृथ्वी हमारी माता है!
इसके पदार्थ से हमारा शरीर बना है जिसे पार्थिव शरीर[Mortal remains] कहते हैं।यह ग्रह है। जीव-जगत के हम सभी जीवों का घर है। इस पर सभी का एक समान अधिकार है। लेकिन इसको राष्ट्र नाम से बांटा जाता है। क्यों...?
क्योंकि राजाओं और राजनेताओं को शासक बनने के लिए एक मानव निर्मित सीमा रेखा चाहिए !
क्योंकि उद्योगपतियों को हथियार बनाने,बेचने का बहाना चाहिए !
हम आत्म अनुशासित रह लेंगे हमें हमारे ऊपर ऐसे शासक नहीं चाहिए,जिनको कोई भी पूंजीपति ख़रीद कर ख़ुद के हित में जनसाधारण का अहित करने वाला काम करवा सके।
हमे स्व का तंत्र बनानें की स्वतंत्रता चाहिए।
राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा के नाम पर हमें घातक हथियार नहीं चाहिए,जवानों को मरने-मारने का बहाना नहीं चाहिए,जन साधारण की परिश्रम की कमाई से गिनती के घातक शस्त्र निर्माताओं को धनवान बनाने राष्ट्रीय प्रणाली नहीं चाहिए। अतः यह वैश्विक आन्दोलन है।
विद्यार्थी आन्दोलन क्यों?
क्योंकि हम युवा हैं। अभी हमारे सामने पूरा जीवन पड़ा है। जबकि कुछ मुट्ठी भर राजनेताओं और उनके मुट्ठी भर पूँजीपति आकाओं ने ऐसा वातावरण बना रखा है कि जब कभी भी उनके राष्ट्र और उनके कारखानों की वित्तीय स्थिति गड़बड़ाती है वे कहीं न कहीं युद्ध का आग़ाज़ कर देंते हैं। ऐसी ही किसी स्थिति में वे विश्वयुद्ध की परिस्थिति पैदा कर देंगे। इससे तो अच्छा है हम समय रहते अपने भविष्य के बारे में सोचें।
आज हमें राष्ट्र के नाम पर,तत्पश्चात राजनीति के नाम पर,दल,पार्टी,विभाग के नाम पर विभाजित कर के रखा गया है। सम्प्रदाय के नाम पर बलपूर्वक विभाजन थोपा गया है और अध्यापक भी वेतनभोगी कर्मचारी (नौकर)हैं। तब हम छात्र ही एक मात्र ऐसा वर्ग हैं जो अविभाजित होकर सम्पूर्ण परिवर्तन के बारे में सोचने का बौद्धिक स्तर रखते हैं।
बौद्धिक आन्दोलन क्यों?
क्योंकि समस्या सिर्फ राजनैतिक सत्ताओं और वित्तीय सत्ताओं की ग़ैरज़िम्मेदारी तक सीमित नहीं है। उन्होंने जिस तरह धरती माँ को बाँट रखा है उसी तरह धर्म के ठेकेदारों ने इंसानियत को बाँट रखा है। धर्म का विषय शिक्षा से,आचरणसे,दायित्व से जुड़ा होता है। जबकि धार्मिक सम्प्रदाय आज अशिक्षित लोगों के आडम्बर का माध्यम बन कर रह गया है। आज की स्थिति यह है कि राष्ट्र के नाम पर विश्वयुद्ध और धर्म के नाम पर गृहयुद्ध की शुरुआत कभी भी हो सकती है। हम छात्र शिक्षा से जुड़े हैं अतः हमारा एक बौद्धिक स्तर है अतः हमारा धर्म बनता है कि हम शांति से बौद्धिक आन्दोलन चलायें।
आन्दोलन का नारा है 'सभी के सुख से रहने के अधिकार की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य (धर्म) की पालना करेंगे "!
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