जगत के तीन आयाम होते हैं।
1. जब हम जीव-जगत कहते हैं तो उसका तात्पर्य उस प्राकृतिक Economics से होता है जिसे Ecology (पारिस्थितिक चक्र) कहा गया है। वनस्पति-जगत ऑक्सीजन व खाद्य-सामग्री देता है तो प्राणी-जगत उसे पेमेंट के रूप में कार्बन डाईऑक्साइड व खाद-सामग्री[मल-मूत्र] दे देता है। इस प्रक्रिया को भावों का सम आदान-प्रदान कहा गया है। इस प्रक्रिया को सुचारू चलने देना और इसके लिए वनों की रक्षा करना जगत कल्याण का पहला आयाम है।
2. जगत-कल्याण का दूसरा तात्पर्य सामाजिक-अर्थव्यवस्था से है,जो बिना मुद्रा के,वस्तु विनिमय व दान से चलती है। हम एक दूसरे की आवश्यकताओं का,हितों का परस्पर ध्यान रखते हैं। भारत जो कि त्योहारों-उत्सवों का देश माना जाता है और त्योहारों पर दान देने का प्रचलन और पुरानी बातों को भुला कर वैमनस्य दूर करने के लिए मिलना जुलना इत्यादि सामाजिक अर्थशास्त्र के हितार्थ हेतु प्रचलित किये गये।
3. जगत-कल्याण का तीसरा तात्पर्य राष्ट्रीय राजनैतिक अर्थव्यवस्था से है जो वाणिज्य एवं टैक्स पर चलता है। इसमें विषमता न होने पाए इसके लिए संविधान बनाते हैं और संविधान में संशोधन करते हैं।
ये जगत के वे बनावटी रूप हैं जिनको आपका ब्रेन[ब्रह्म] पुनः पुनः डिज़ाइन करता रहता है। अतः जगत के कल्याण हेतु आप अपने निजी स्तर पर जो कुछ भी करते हैं वह प्रशंसनीय है लेकिन आज जब सामाजिक संरचना खंडहर हो गयी है और राष्ट्रीय साम्राज्य के सामने सभी बौने हो गए हों और यह जो साम्राज्यवादी शासन-प्रशासन व्यवस्था-प्रणाली, Imperialistic governance administrative arrangements systems है इसमें इस तरह बँधे हुए हैं कि कोई भी पूंजीपति; मदारी बन कर बंदरिया की तरह,इस व्यवस्था के माध्यम से पूरे देश को नचा सकता है।
अतः आज के परिप्रेक्ष्य में जगत के कल्याण हेतु निजी स्तर पर किये जा रहे प्रयास का लाभ भी अन्ततः पूंजीपति के हित में जाते हैं। अतः आज अर्जुन को,एक भावी शासक दल के एक सदस्य को कहे गए आख्यान गीता, में बताये गए उपायों को समझना चाहिए।
विगत समय[19वीं सदी तक] जब भारत में किसान-क्षत्रिय एवं ब्राह्मण-अध्यापक ही सर्वोच्च सत्ता में थे तब धर्म के इस वैष्णव-आख्यान गीता को इतना महत्त्व नहीं दिया गया लेकिन आज जब वैश्य वर्ग के वर्चस्व में वैश्विकरण हो गया है तो इस आख्यान का महत्त्व भी बन गया है। अतः वेदव्यास के ब्लॉग्स में गीता की व्याख्या पढ़ें। जिनकी धृति राष्ट्र में बँधकर रह गयी है ऐसे धृतराष्ट्र के पुत्रों धार्तराष्ट्रों से, भारतदेश और भारतवर्ष को बचाने के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं, वही प्रयास जगत के कल्याण का हेतु बन जायेगा।
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